मृत्यु क्या है और इंसान क्यों मरता है? मनुष्य सवालों का जवाब हजारों सालों से खोज रहा है। जब हमारे किसी अजीज की मौत होती है, तब खासकर उस वक्त हमारे मन में सवाल उठता है कि लोग क्यों मरते हैं?
कई विद्वानों द्वारा या फिर धार्मिक ग्रंथों में मृत्यु के बारे में लिखा गया है। जिस भी जीव का जन्म इस धरती पर हुआ है, एक ना एक दिन व धरती के पंचतत्व में विलीन हो जाएगा।
यह जीवन का एक कड़वा सच है। हर चीज जो इस धरती पर जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है। परंतु इसके बावजूद मन में कई सवाल उठते हैं। आखिर क्यों हर जीव मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। आखिर इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण क्या है? क्या मनुष्य अमरता प्राप्त नहीं कर सकता? ऐसे ही कई सवाल अक्सर मन में आते होंगे। आइए चलिए जानते हैं की मनुष्य या अन्य जीव क्यों मरते हैं? और इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण क्या है?
मनुष्य और जीवो के मरने के पीछे का वैज्ञानिक कारण
किसी भी जीव की शुरुआत उसके जन्म से होती है। अगर चार्ल्स ड्रोविन के सिद्धांत के अनुसार सोचा जाए तो मनुष्य एक कोशिकीय जीव से बना है। उसे पूर्ण मनुष्य का आकार लेने में कई करोड़ों साल लगे हैं। मनुष्य का जन्म उसी एक कोशिकीय जीव से हुआ है। एक कोशिकीय जीव में विघटन होते होते इसने अन्य जीवो का रूप लिया। इसी तरह संपूर्ण जीवो का विकास हुआ है।
जब मनुष्य जन्म लेता है तो उसकी पहली अवस्था बचपन होती है। उस समय उसके शरीर के कोशिकाएं और अंग विकसित अवस्था में होती है। शरीर की कोशिका है और लगभग 28 से 30 साल तक की उम्र तक बढ़ते रहते हैं।
30 की उम्र में इंसानी शरीर में ठहराव आने लगता है। 35 साल के आसपास लोगों को लगने लगता है कि शरीर अब कुछ गड़बड़ करने लगा है। 30 साल के बाद हर दशक में हड्डियों का दौरान 1 फ़ीसदी कम होने लगता है।
30 से 80 साल की उम्र के बीच इंसान का शरीर 40 फ़ीसदी मांसपेशियां खो देता है। जो मांसपेशियां बस्ती है वह भी कमजोर होती जाती है। शरीर में लचक कम होती चली जाती है। जीवित जीवों प्राणियों में कोशिकाएं हर विभाजित होकर के नई कोशिकाओं का निर्माण करती है। यही वजह है कि बचपन से लेकर जवानी तक शरीर विकास करता है। लेकिन उम्र बढ़ने के साथ-साथ कोशिकाओं के विभाजन में गड़बड़ी होने लगती है। उनके भीतर का डीएनए क्षतिग्रस्त हो जाता है और नई कमजोर या बीमार कोशिकाएं पैदा होती जाती है।
इन कमजोर कोशिकाएं से शरीर में कई तरह की बीमारियां जैसे ज्ञान से और दूसरी अन्य बीमारियां पैदा होती है। हमारे रोग प्रतिरोधी तंत्र को इसका पता नहीं चल पाता है, क्योंकि वह इस विकास को प्राकृतिक मानता है। धीरे-धीरे यही गड़बड़ गया प्राण घातक साबित होती जाती है। आराम भरी जीवनशैली के चलते शरीर मांसपेशियों को विकसित करने के बजाय, शरीर में ज्यादा मात्रा में वसा जमा करने लगता है। वसा ज्यादा होने पर शरीर को लगता है कि उर्जा का पर्याप्त भंडार मौजूद है, लिहाजा शरीर के भीतर हार्मोन संबंधी बदलाव आने लगते हैं और यह बीमारियों को जन्म देता है। और शरीर की अन्य कोशिकाएं भी कमजोर होने लगी है, जिससे मनुष्य में बुढ़ापा, चेहरा मैं झुरिया आने लगती है।
प्राकृतिक मौत शरीर के अचानक शट डाउन होने की प्रक्रिया है। मृत्यु से ठीक पहले कई अंग काम करना बंद कर देते हैं। देखा गया है कि आमतौर पर सांस पर इसका सबसे ज्यादा असर दिखता है। सांस बंद होने के कुछ देर बाद दिल काम करना बंद कर देता है। धड़कन बंद होने के करीब 4 से 6 मिनट बाद मस्तिष्क ऑक्सीजन के लिए छटपटा ने लगता है। किशन की कमी के कारण मस्ती की कोशिकाएं मरने लगी है। विज्ञान में या कहें मेडिकल साइंस में इसे प्राकृतिक मृत्यु ( नेचुरल डेथ) या पॉइंट ऑफ नो रिटर्न कहते हैं।
मृत्यु के बाद हर घंटे शरीर का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस घटने लगता है। शरीर में मौजूद खून को जगाओ पर जमने लगता है और मनुष्य का पूरा का पूरा शरीर अकड़ सा जाता है। त्वचा की कोशिकाओं मौत के बाद 24 घंटो तक जीवित रहती है, आंतों में मौजूद विभिन्न बैक्टीरिया भी जिंदा रहते हैं। युधिष्ठिर या बाद में शरीर को प्राकृतिक तत्वों से तोड़ने लगते हैं।
मौत को डालना संभव नहीं है, यह आनी है, लेकिन शरीर को स्वस्थ रख कर इसके खतरे को लंबे समय तक टाला जा सकता है।
मौत के बाद क्या होता है?
जब शरीर को आत्मा छोड़ जाती है, तो व्यक्ति के साथ क्या होता है? यह सवाल सदियों पुराना है। इस पर कहीं वैज्ञानिक तथ्य भी दिए गए हैं। और इससे जुड़े कुछ धार्मिक तथ्य भी है। परंतु इन तथ्यों पर आज भी मनुष्य द्वारा सवाल उठाए जाते रहे हैं।
विश्व भर में कई ऐसी घटनाएं दर्ज की गई है जिसमें मृत व्यक्ति दोबारा जीवित हो उठा है। उनके द्वारा दी गई व्याख्या में कहा गया है, सामान्य व्यक्ति जैसे ही शरीर छोड़ता है, सर्वप्रथम तो उसकी आंखों के सामने अंधेरा सा छा जाता है। जहां उसे कुछ भी अनुभव नहीं होता। कुछ समय तक तो कुछ आवाजें सुनाई देती है, कुछ दृश्य दिखाई देते हैं जैसे कि व्यक्ति स्वप्नलोक में हो। और धीरे-धीरे व्यक्ति लंबी निंद्रा में खो जाता है।
इस गहरी नींद में कई लोग तो अनंत काल के लिए खो जाते हैं, तो कुछ इस अवस्था में ही किसी दूसरे घर में जन्म लेते हैं। प्रकृति उन्हें उनके भाव विचार और जागरण की व्यवस्था अनुसार गर्भ उपलब्ध करा देता है।
लेकिन यदि व्यक्ति स्मृतिवान ( चाहे अच्छा हो या बुरा) है तो गहरी अनंत काल की निद्रा में जाकर चीजों को समझने का प्रयास करता है। लेकिन फिर भी वह जागृत और स्वपन अवस्था में भेद नहीं कर पाता। कुछ कुछ ज्यादा हुआ और कुछ कुछ सोया हुआ सा रहता है, लेकिन उसे उसके मरने की खबर रहती है। ऐसे व्यक्ति तब तक जन्म नहीं ले सकता जब तक कि उसकी इस जन्म की स्मृतियों का नाश ना हो जाए। ऐसा भी देखा गया है कि कुछ अपवाद स्वरूप जन्म ले लेते हैं जिन्हें पूर्व जन्म का ज्ञान हो जाता है। लेकिन जो व्यक्ति बहुत ही ज्यादा स्मृति वन जागृत या ध्यानी है उसके लिए दूसरा जन्म लेना बहुत कठिनाई भरी होती है, क्योंकि प्रकृति प्रोसेस अनुसार दूसरे जन्म के लिए बेहोश और स्मृति हीन रहना जरूरी है।
मौत के बाद विज्ञानिक अवस्थाएं
मौत के बाद शरीर कई अवस्थाओं से गुजरता है। और इन अवस्थाओं को विज्ञानिक नाम भी दिया गया है।
- अलगोर मॉर्टिस ( मरने के 1 घंटे बाद)
- रिगोर मॉर्टिस ( मरने के 1 से 8 घंटे में)
- लिवर मॉर्टिस ( मरने के 8 से 12 घंटे में)
- प्यूट्रईफैक्शन ( मरने के 12 से 24 घंटे के बीच)
विज्ञान में इन अलग-अलग अवस्थाओं के बारे में बताया गया है। इन अवस्थाओं में शरीर के गलने के स्टेज से लेकर शरीर के अकड़ ने मांसपेशियों के जमने, शरीर में खून का बहाव रुकना, शरीर में मौजूद प्रोटीन का गलना आदि शामिल है।
मृत्यु के दो हफ्ते बाद, बाल, नाखून, और दातँ बहुत आसानी से अलग हो सकते हैं, शरीर की चमड़ी मोम की तरह लटकने लगती है। जिस वजह से लाश को हिलाना तक मुश्किल होता है। दातों की मदद से लाश को पहचाना जा सकता है। मृत्यु के 1 महीने बाद, लास की हालत बहुत ही बुरी होती है, ऊपर की चमड़ी पानी की तरह हो जाता है या बिल्कुल सूख जाती है। यह लाश के आसपास के एरिया पर निर्भर करता है। मृत्यु के कई महीनों बाद, इस स्टेज में मांस बिल्कुल मोम की तरह हो जाता है और शरीर की स्मेल भी खत्म हो जाती है। इस मास को डॉक्टरी भाषा में ऐडी पोकर कहा जाता है। 17वीं शताब्दी में कुछ लोग एडी पोकर का इस्तेमाल मोमबत्तियां बनाने के लिए भी क्या करते थे। यह मूवी लोग थे जो “मम्मी” पूजा में यकीन किया करते थे।
बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में डंकन मैकडोवेल ने 21 ग्राम थ्योरी देख कर एक नया डिस्कशन पैदा किया था। उनकी इस नई थ्योरी मैं उन्होंने कहा था कि किसी इंसान की मौत के बाद उसके शरीर के भाड़ में कुल 21 ग्राम का फर्क आता है और यह उसकी आत्मा का भार होता है।
अभी भी उनकी यह थ्योरी मात्र एक डिबेट का विषय बनी हुई है। उनके इस थ्योरी के ऊपर में हॉलीवुड की एक मूवी भी बनाई जा चुकी है। कई सारे लोग इनकी इस थ्योरी पर विश्वास भी करते हैं और कई नहीं भी, लेकिन इस दुनिया में एक सबसे बड़ा सच तो यह है कि जिस भी जीव ने इस धरती पर जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है।